स्थायी रोजगार के लिए भटक रहे प्रदेश के 26 हजार स्वच्छाग्राही कर्मी,नोटा पर वोट देने को मजबूर
प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) ने अलग-अलग वर्गों को खुश करने के तमाम प्रयास किए लेकिन उनमें कुछ वर्ग मुख्यमंत्री की नजर में नहीं आए और वो भटकने को मजबूर हैं। ऐसे ही प्रदेश भर में काम कर रहे करीब 26 हजार स्वच्छाग्राही कर्मी (swacchagrahi workers) आज भी न्याय के लिए भटक रहे हैं। एक मामूली से पगार पर काम करने वाले इन स्वच्छाग्राही कर्मियों को जब पता चला कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पंचायतों में काम करने वाले रोजगार सहायकों की नौ हजार से सीधे 18 हजार रुपये पगार कर दी और संविदा कर्मियों (samvida workers) को नियमित के समान वेतन और सुविधा कर दी तो स्वच्छाग्राहियों ने भी खुद के लिए न्याय की गुहार लगाना शुरु कर दिया। स्वच्छाग्राही संगठन सी.एफ. टी ने केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर (Narendra Singh Tomar) के बंगले से लेकर कई मंत्रियों और संगठन के पदाधिकारियों के पास गुहार लगाई लेकिन नतीजा शिफर ही रहा। थक हार कर स्वच्छाग्राही संगठन के पदाधिकारी पवन परमार बीजेपी प्रदेश कार्यालय भी पहुंचे लेकिन वहां भी उन्हे सुनने वाला कोई नहीं मिला। अब इस संगठन का कहना है कि सरकार इनके लिए उचित फैसला नहीं लेती है तो प्रदेश भर में इनकी 26 हजार संख्या है तो वो और उनके परिवार के सभी सदस्य नोटा की बटन दबाएंगे (NOTA)। गौरतलब है कि इनकी नियुक्ति राज्य सरकार के निर्देश पर ग्राम पंचायत में शिक्षित ब्यक्तियों का चयन कर जनपद भेजा गया था। इन स्वच्छाग्राहियों ने कोरोनाकाल में वालेंटियर का कार्य किया,ई.ओ.एल कार्य, एस. एल.डब्ल्यु का योजना का कार्य विशेषकर मप्र में स्वच्छता मिशन अंतर्गत मध्यप्रदेश के समस्त पंचायतों को ओडीएफ कराने में स्वच्छाग्राहियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह स्वच्छाग्राही महज 150 रुपये प्रति दिन के हिसाब से काम करते हैं महीने में इन्हे महज तीन हजार रुपये मनदेय दिया जाता है क्योंकि इनसे काम भी सिर्फ 20 दिन लिया जाता है। लिहाजा इतने कम मानदेय में इनका गुजारा नहीं हो पा रहा है लिहाजा इनकी सरकार से गुजारिश है कि इनका मानदेय बढ़ाया जाए और नियमित कर्मचारियों की भांति इनसे काम लिया जाए जिससे ये अपने परिवार का ठीक तरीके से भरण पोषण कर सकें। सरकार इनकी बात नहीं मानती है तो ये नोटा की बटन दबाने के लिए मजबूर होंगे।
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