खुद को 'ब्राह्मण' नेता कहलवाने से डरते हैं भाजपा नेता,दूसरे वर्ग के नेता अपने समाज के लिए उठाते हैं मुखरता से आवाज

मप्र में पिछले 20 साल से भाजपा की सरकार है। भाजपा और कांग्रेस की सरकारों में तुलना करें तो भाजपा सरकार में न सिर्फ ब्राह्मण बल्कि पूरे सवर्ण वर्ग के खिलाफ आपराधिक मामले बढ़े हैं और सरकार की भी इस पूरे मामले में सिर्फ मुली जुली प्रतिक्रिया देखने को मिलती रही है। भाजपा की सरकार में सामान्य वर्ग के अस्तित्व को पूरी तरह से खत्म करने का प्रयास लगातार जारी है और भाजपा में ब्राह्मण,क्षत्रिय और वैश्य वर्ग के नेता ब्राह्मण वर्ग के नाम पर राजनीति करने वाले नेता सवर्ण वर्ग पर अत्याचार होने पर 'मूकबधिर' बन जाते हैं उनकी कोई प्रतिक्रिया अपने समाज के लिए नहीं आती है। जबकि इसके उलट एससी-एसटी और जनजाति वर्ग के नेता अपने समाज का नेता कहलाने में गर्व महसूस करते हैं। किसी भी दलित पर अत्याचार होता है तो नेता पूरी मुखरता के साथ अपने समाज के लिए आवाज उठाते हैं और सरकार को बैकफुट में धकेलने का मद्दा रखते हैं। जबकि प्रदेश की राजनीतिक पार्टियों में सामान्य वर्ग के नेताओं का प्रभुत्व है एक बड़ी संख्या होने के बाद भी वो इस बात से डरते हैं कि अगर वो अपने समाज की पैरवी करेंगे और खुल कर बोलेंगे तो उनका जनाधार कम हो जाएगा। ब्राह्मण वर्ग की बात करें तो भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ब्राह्मण वर्ग के कोटे से ही प्रदेश अध्यक्ष हैं लेकिन वो ब्राह्मणों पर अत्याचार की घटना होने पर 'मुकबधिर' हो जाते हैं। दूसरे नेता राजेन्द्र शुक्ला जो डीप्टी सीएम हैं और उन्हे ब्राह्मण वर्ग के नाते ही डिप्टी सीएम बनाया गया है। लेकिन उनकी कोई प्रतिक्रिया कभी सामने नहीं आती है। गोपाल भार्गव की बात करें वो भी हमेशा चुप रहते हैं। नरेन्द्र सिंह तोमर की बात करें अतवा सवर्ण वर्ग के अन्य नेताओं की ये नेता कभी भी अपने समाज के लिए खड़े नहीं होते। लिष्ट इतनी बड़ी है कि उसमें नाम लिखना संभव नहीं है। इन सभी बातों का मतलब सिर्फ एक है कि आखिर सामान्य वर्ग से आने वाले ये सभी नेता अपने समाज की आवाज उठाने में डरते क्यों हैं। इसके ठीक उलट बात करें तो अन्य समाज के नेता अपने समाज के लिए गर्व के साथ आवाज उठाते हैं और जब तक सरकार को बैकफुट में नहीं ला देते तब तक शांत भी नहीं बैठते हैं।
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