विजयपुर ऑफीशियली और बुंधनी में अन ऑफीशियली हारी भाजपा,साल भर में भाजपा से मोह भंग
मप्र में लाड़ली बहना योजना सहित अनेक ऐसी योजनाएं हैं जो संचालित हो रही हैं और भाजपा को यही लगता है कि जब तक लाड़ली बहना जैसी योजना चल रही है तब तक भाजपा को कोई टक्कर नहीं दे पाएगा। फिर ऐसा क्या हुआ कि साल भर के अंदर ही भाजपा की खुशियों में पानी फिर गया और अंदर चल रही लड़ाई सतह पर आ गई। जिस प्रकार से भाजपा ने विजयपुर और बुंधनी उप चुनाव में ताकत झोकी उससे भाजपा नेताओं को दोनों सीटों में जीत का पूरा विश्वास था लेकिन वो विश्वास रेत के बने महल की तरह तहस नहस हो गया और जनता ने सरकार और संगठन को यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि आप जो सोचो वही सही नहीं होगा। फाइनल वोटिंग तो जनता के हाथ में ही है और वही हार जीत तय करेगी। हुआ भी ऐसा ही। जिस प्रकार से विजयपुर और बुंधनी का चुनाव जनता पर थोपा गया उससे जनता भी नाराज हो गई बानगी के तौर पर विजयपुर में वहां की जनता ने मंत्री रामनिवास रावत को धूल चटा दी तो वहीं बुंधनी जिसको भाजपा जीत मान कर चल रही है वहां वास्तविकता तो यही है कि भाजपा बुंधनी का भी चुनाव भार कई। क्योंकि महज साल भर के अंदर 91वे हजार भाजपा के वोट घट गए और रमाकांत भार्गव को महज 13901 वोटों की जीत से संतोष करना पड़ा। साल भर में वोट की गितनी गिरावट जबकि पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने बुंधनी में सारी ताकत झोंक दी तब यह हालत हुई। इन सभी बातों को देख कर यह स्पष्ट है कि भाजपा बुंधनी में ऑफीशियली भले चुनाव जीत गई है बांकी नैतिकता के आधार पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। य यूं भी कहा जा सकता है कि कांग्रेस को शायद इस बात की भनक नहीं थी कि बुंधनी में इतना करीबी मुकाबला होगा नहीं तो कांग्रेस के नेता बुंधनी में और जोर लगाते। फिलहाल एमपी बीजेपी के नेता बुंधनी के नाम पर भले ही खुद की पीठ थपथपा रहे हैं लेकिन हकीकत क्या है क्या है यह बात भाजपा के सभी नेताओं को मालूम है।
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