पदोन्नति मामले में लामबंद हो रहे शासकीय कर्मचारी,सभी विभागों में एक जैसी व्यवस्था लागू करने की मांग

पदोन्नति में आरक्षण मामला एक बार फिर राज्य सरकार के गले की फांस बनता जा रहा है। गौरतलब है कि साल 2018 में भी भाजपा को पदोन्नति में आरक्षण के मामले में शिकस्त का सामना करना पड़ा था और 15 साल के अंतराल के बाद विपक्ष में बैठना पड़ा था। दरअसल कर्मचारी संगठनों की नाराजगी इस बात को लेकर है कि जब सुप्रीम कोर्ट यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दे चुका है तो फिर सरकार का पदोन्नति को लेकर अलग-अलग मापदंड क्यों अपना रही है। कहीं एकल पद का हवाला देते हुए पदोन्नति की जा रही है तो कहीं कोर्ट के आदेश का आड़ लेकर प्रक्रिया रुकी हुई है। कर्मचारियों की मांग है कि एक जैसी व्यवस्था सभी वर्गों के लिए लागू करने की है। प्रदेश में साल 2016 मे पदोन्नति में आरक्षण के मुद्दे को लेकर हाईकोर्ट जबलुपर ने मध्य प्रदेश लोकसेवा पदोन्नति नियम 2002 निरस्त कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट में मामला विचाराधीन है और यथास्थिति बना कर रखने के निर्देश दिए हैं। पदोन्नति न होने से कर्मचारी नाराज थे और यह चुनाव में भारी न पड़ जाए इसलिए तत्कालीन शिवराज सरकार ने उच्च पद का प्रभार देने की व्यवस्था लागू कर दी थी। साथ ही पदोन्नति के नए नियम बनाने के लिए मंत्री समूह का गठन कर दिया था। समूह ने कर्मचारी संगठनों से चर्चा भी कर ली। प्रस्तावित नियम का प्रारुप बनाकर मुख्यमंत्री कार्यालय भेज दिया पर अंतिम निर्णय अभी तक नहीं हुआ।
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