अहंकार तो रावण का नहीं रहा तो सियासत को 'रियासत' समझने वालों का कब तक रहेगा

Apr 6, 2025 - 10:40
Apr 6, 2025 - 11:30
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अहंकार तो रावण का नहीं रहा तो सियासत को 'रियासत' समझने वालों का कब तक रहेगा

रावण,राजनीति और अहंकार यह राजनीति में आम हैं। राजनेता अपने भाषण में रावण का जिक्र करते हैं उसके अहंकार की भी बात करते हैं। लेकिन वही अहंकार उन पर भी भारी है इस बात को नेता कभी स्वीकार नहीं करते। क्योंकि इस सियासत को वो अपनी 'रियासत' समझ बैठते हैं। जिन-जिन नेताओं ने सियासत को रियासत समझा वो मिट्टी में मिल गए। वर्तमान राजनीति में कई ऐसे सियासतदान हैं जो खुद को खुदा समझ रहे हैं और आम इंसान को कीड़ा मकोड़ा समझ रहे हैं। उन्हे इस बात का अहसास नहीं होता कि जो आज उनके पास के कल तक किसी और के पास था और कल और किसी के पास होगा। इस बात को ऐसे नेता तब समझते हैं जब पद,प्रतिष्ठ सब खत्म हो चुकी होती है। मप्र की राजनीति में कुछ ऐसे नेता उभर कर सामने आए हैं जो बेहद ही आम घरों से आए और आज वाहनों के काफिले की चकाचौंध में सड़क किनारे खड़ा आम आदमी उन्हे दिखाई नहीं पड़ता वो इस बात को नहीं समझते कि कल तक वो भी इसी तरह चिलचिलाती धूप में खड़े रहा करते थे। लेकिन सुख और ऐश्वर्य के वैभव में वो इतने चकनाचूर हो जाते हैं कि उनमें अहंकार रुपी रावण प्रवेश कर जाता है जिसका उन्हे भान तक नहीं रहता है। राजनीति की चमक ऐसी होती है कि उसमें संघर्ष के बाद फल मिलता है। किसी को जल्दी मिलता है किसी को थोड़ा लेट मिलता है। जिसे जल्दी फल मिल जाता है वो रावण का विकराल रुप धारण कर लेता है। और सियासत को रियासत समझ लेता है। ऐसे रावण धरती पर कभी नहीं टिका करते। और ऐसे रावणों का अंत करने के लिए ही भगवान श्रीराम का जन्म होता है। इस रामनवमी में भी कुछ रावणों का अंत होगा और फर्ष से अर्ष में पहुंचे वो नेता अगली राम नवमी में फिर फर्ष पर होंगे। ऐसे कई नेताओं की सूची तैयार है। जो सियासत को अपनी रियासत समझ बैठे हैं। महाभारत में शकुनी की राजनीति के सभी कायल थे लेकिन उसकी राजनीति सिर्फ अधर्म के लिए थी और वहीं पर भगवान श्रीकृष्ण ने जो राजनीति की वो सिर्फ धर्म के लिए की इसी लिए भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है और कुचक्र करने वाले को शकुनी की तरह दुतकार मिलती है। ऐसे सभी शकुनी इस रामनवमी में सियासी चमक से दूस होंगे। नेता यह भूल जाते हैं कि राजनीति जनता की सेवा के लिए की जाती है न कि धन कमाने के लिए लेकिन अब सिर्फ उल्टा देखने को मिलता है। पहले हाथ जोड़ कर राजनीति में कामयाबी हासिल करो और फिर रावण बन कर राज करो।

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