ऐसा लगता है चाय की मिठास अब फीकी पड़ने लगी है,मीठी करने के चक्कर में चाय के फटने का डर भी है,लेकिन दूसरा कोई रास्ता भी नहीं
दस साल पहले देश में चाय बेचने वाले ब्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाया गया| देश की जनता ने सिर आंखों पर बिठाया और पीएम मोदी ने जो कहा देश की जनता ने उसी को स्वीकार किया| चाय वाले के नाम से प्रसिद्धि पाने वाले पीएम मोदी ने जमकर चाय पर चर्चा की,दिल्ली से लेकर एमपी और हर राज्यों में भाजपा ने सिस्टम बना लिया कि चुनाव के दौरान चाय पर चर्चा करनी है और उसी दौरान पार्टी की रणनीति को तैयार करना है| हुआ भी ऐसा ही चाय पर हुई चर्चा ने भारतीय जनता पार्टी को सत्ता के शिखर पर तो पहुंचाया ही जिस राज्य में चुनाव हुए हर जगह भारतीय जनता पार्टी ने जीत का पर्चम लहराया| जिस चाय ने भारतीय जनता पार्टी को सत्ता के शिखर तक पहुंचाया उसी चाय को भाजपा भूल गई और अलग-अलग पेय पदार्थों ने देश में राज करना शुरु कर दिया| चाय कब फीकी पड़ने लगी भारतीय जनता पार्टी के आधुनिक चाणक्य को इस बात का अहसास ही नहीं हो पाया और जब तक भाजपा को चाय फीकी पड़ने का अहसास हुआ तो भाजपा 303 से 240 में आकर सिमट गई| बात यहीं खत्म नहीं हुई, विधानसभा के उप चुनावों में भी भारतीय जनता पार्टी की चाय में मिठास नहीं आई जबकि कोशिश तो अच्छी चाय बनाने की हुई फिर भी जनता को भाजपा की चाय अच्छी नहीं लगी| दरअसल भाजपा की चाय में पप्पू का रंग पड़ चुका था| पीएम मोदी जीरो टोल रेंस की बात करते रहे और एक के बाद एक भ्रष्टाचार के मामले सामने आते रहे| इतनी ही नहीं जात,धर्म और न जाने चुनाव में क्या-क्या हथकंडे अपनाए गए और उन सभी से देश की जनता ऊबने लगी,हद तो तब होने लगी जब प्रचारित किया गया कि ‘जो राम को लाए हैं हम उनको लाएंगे’ ऐसे शब्दों का चुनाव में प्रचार किया गया तो अयोध्या की जनता ने भी बता दिया कि राम को लाने की किसी में क्षमता नहीं है जब उनको आना होता है तभी वो आते हैं| फिलहाल भारतीय जनता पार्टी की चाय का स्वाद अब जनता को पसंद नहीं आ रहा है| भाजपा को अब चाय के बजाय कुछ और सामने लाना होगा नहीं तो 2028 और फिर 29 तक देश और मध्यप्रदेश की जनता के मुंह में कोई और स्वाद अपनी जगह बना लेगा|
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