शासकीय कर्मचारियों के डीए पर भारी पड़ रही 'मोदी की गारंटी' डीए के प्रस्ताव पर अब तक मंजूरी नहीं
मध्यप्रदेश की करीब साढ़े सात लाख कर्मचारियों का डीए पिछले छह महीने से लंबित है जिसके चलते प्रति माह शासकीय सेवकों को चार से पांच हजार रुपये का नुकसान हो रहा है। विधानसभा चुनाव में आचार संहिता के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने डीए को लेकर पैरवी की थी लेकिन निर्वाचन आयोग की तरफ से उसकी अनुमति नहीं मिली थी। कर्मचारियों को लगा था कि चुनाव समाप्त होने के बाद उनका अधिकार उन्हे मिल जाएगा लेकिन आज तक ऐसा नहीं हुआ। ऐसा नहीं है कि शासकीय सेवकों के डीए का प्रस्ताव सरकार के पास नहीं पहुंचा है। अब तक नई सरकार बनने के बाद तीन से अधिक बार शासकीय सेवकों (mp government employees) के डीए का प्रस्ताव मुख्यसचिव के टेबल पर गया और उसी तरह सीएम मोहन यादव के टेबल पर भी प्रस्ताव गया लेकिन हर बार मुख्यमंत्री ने यह कह कर प्रस्ताव को खारिज कर दिया कि अभी बजट नहीं है आगे देखेंगे। अब लोकसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लगने वाली है। अभी तक राज्य सरकार ने शासकीय कर्मचारियों का चार फीसदी डीए देने पर किसी प्रकार का विचार नहीं किया है। मंत्रालय में मौजूद Mukhbir का कहना है कि चुनाव आचार संहिता के एक या दो दिन पहले मुख्यमंत्री डीए देने की घोषणा कर सकते हैं जिससे लोकसभा चुनाव में शासकीय सेवकों का वोट लिया जा सके। जबकि सोमवार को मोहन कैबिनेट की बैठक आयोजित की गई थी जिसमें धार्मिक कार्यक्रमों के अलावा अन्य प्रस्तावों पर चर्चा हुई और उनमें सहमति भी बनी लेकिन इस कैबिनेट में भी शासकीय कर्मचारियों के डीए पर सरकार ने मुहर नहीं लगाई है। सरकार का मानना है कि 'मोदी की गारंटी' पर जनता को विश्वास है लिहाजा जनता भाजपा के प्रत्याशियों को ही चुनाव जिताएगी शासकीय सेवकों की नाराजगी का ज्यादा असर लोकसभा चुनाव में नहीं पड़ेगा। वहीं कर्मचारी संगठनों की नाराजगी अब धीरे-धीरे सतह पर आने लगी है। कर्मचारी नेताओं का साफ कहना है सरकार ने उनको सिर्फ ठगने का काम किया है सिर्फ आश्वासन देने का काम किया जा रहा है जिसे अब कर्मचारी भी समझ चुके हैं।
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