रीवा और सतना में जातीय समीकरण के आगे फेल हो सकती है मोदी की 'गारंटी'

विंध्य क्षेत्र राजनीतिक दृष्टिकोण से हमेशा कठिन माना जाता रहा है। और बात जब चुनाव की आती है तो विंध्य में जातीय समीकरण पूरे शबाब पर आ जाते हैं। बात सतना और रीवा की हो तो कुछ अलग ही समीकरण सामने आते हैं। सतना से भाजपा ने चार बार के सांसद गणेश सिंह (ganesh singh) को पांचवीं बार चुनाव मैदान में उतार दिया है जो विधानसभा चुनाव में शिकस्त खा चुके हैं फिर भी भाजपा ने उनके नाम पर ही विश्वास दिखाया है। उनके खिलाफ कांग्रेस ने शिद्धार्थ कुशवाहा (siddharth kushwaha) को चुनाव मैदान में उतारा है दोनों नेता ओबीसी वर्ग से आते हैं। गणेश सिंह को कट्टर कुर्मी और जातिवादी नेता माना जाता है इसी लिए सतना में अन्य वर्ग के वोटर गणेश सिंह को पसंद नहीं करते। अब पता चल रहा है कि मैहर विधानसभा से कई बार विधायक रह चुके नारायण त्रिपाठी फिर से चुनाव मैदान में उतरने की रणनीति बना रहे हैं। नारायण त्रिपाठी एक ब्राम्हण नेता हैं और भाजपा कांग्रेस दोनों दलों से ओबीसी नेताओं के चुनाव लड़ने के कारण नारायण त्रिपाठी को ब्राम्हण वोट मिलना तय है। कुछ इसी प्रकार रीवा में भी समीकरण देखने को मिल रहे हैं जहां भाजपा ने दो बार के सांसद जनार्दन मिश्रा को फिर चुनाव मैदान में उतार दिया है। जनार्दन मिश्रा सरल और सौम्य ब्यक्तित्व के धनी हैं लेकिन उनकी क्षेत्र में उपस्थिति न के बराबर रहती है इसलिए रीवा की जनता उनसे नाराज है। Mukhbirmp.com को मिली जानकारी के अनुसार कांग्रेस भी ब्राम्हण उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारने की योजना बना रही है। अगर यहां से कांग्रेस ने किसी DMT वर्ग के नेता यानि मिश्रा,तिवारी अथवा दुबे पर दांव लगाया तो मुकाबला दिलचश्प हो जाएगा। और इनसे हट कर बीएसपी ने अगर किसी कुर्मी वर्ग (पटेल) नेता को चुनाव मैदान में उतार दिया तो मुकाबला त्रिकोणीय हो जाएगा और बीएसपी के जीतने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। रीवा और सतना में जिस प्रकार से जातीय समीकरण देखने को मिल रहे हैं उसमें मोदी की 'गारंटी' भी कुछ ज्यादा कमाल नहीं दिखा पाएगी।

Mar 14, 2024 - 14:07
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रीवा और सतना में जातीय समीकरण के आगे फेल हो सकती है मोदी की 'गारंटी'

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