50% की सीमा से अधिक 13 प्रतिशत मिला आरक्षण,अधिकारियों ने की जमकर मनमानी,सामान्य वर्ग की घटी नौकरियां
न्यायालय का फैसला आए बगैर ही मध्यप्रदेश के अधिकारियों ने कई विभागों में ओबीसी वर्ग को 27 फीसदी की सीमा पार करते हुए नौकरियां दे दी हैं| इससे सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों का नुकसान तो हुई ही,13 प्रतिशत ओबीसी के वो प्रत्याशी नौकरी में आ गए जो अपात्र थे| गौरतलब है कि साल 2019 में कमलनाथ मंत्रिमंडल वाली सरकार के समय ओबीसी आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया था| इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई तो कई भर्ती परीक्षा परिणाम रोक दिए गए| बाद में 13 प्रतिशत पद रोककर परीक्षा परिणाम जारी किए गए लेकिन अधिकारियों ने खेल यह किया कि जिन पदों की भर्ती को लेकर मामले विचाराधीन थे,उसे छोड़कर बाकी में 27 प्रतिशत आरक्षम के हिसाब से नियुक्ति दे दी| इससे आरक्षण का अनुपात गड़बड़ा गया| अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग को 20, अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग को 16 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत आरक्षण मिल गया जो 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा से 13 प्रतिशत अधिक है| इससे सीधे-सीधे अनारक्षित वर्ग के हित प्रभावित हो रहे हैं| गौरतलब है कि वोट बैंक की राजनीति के चलते तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने इस प्रकार का फैसला लिया था क्योंकि प्रदेश में ओबीसी का एक बड़ा वोट बैंक है| मध्यप्रदेश पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की रिपोर्ट के अनुसार ग्वालियर-चंबल,बुंदेलखंड,विंध्य और मध्य क्षेत्रों में ओबीसी मतदाता बड़ी संख्या में हैं| वोट बैंक की राजनीति के चलते ही मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने निर्णय के विपरीत जाकर ओबीसी आरक्षण की व्यवस्था की थी जो अब कोर्ट में विचाराधीन है| ओबीसी का मामला पांच साल से 27 प्रतिशत या 14 प्रतिशत पर अटका हुआ है| इस दौरान मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग (एमपीपीएससी) से ओबीसी वर्ग की एक भी नियुक्ति नहीं हुई है| कांग्रेस सरकार में शुरु हुए इस मामले को भाजपा सरकार ने सुलझाने का कोई प्रयास भी नहीं किया| वोट बैंक के इस पूरे खेल में एमपीपीएससी के प्रभावित अभ्यर्थी 90 प्रतिशत युवा हैं,जो सरकार की राजनीति का शिकार हुए हैं|
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