चला चली की बेला में रुखे-रुखे से हैं साहब,कोई मिलने जाए तो उससे ठीक से बात करने से भी कर रहे परहेज
कहते हैं बुझता हुआ दिया ज्यादा फड़फड़ाता है| कुछ ऐसे ही हालात भाजपा में पद से बाहर होने वाले साहब के हैं| करीब पांच साल तक पद और पावर में रहने के बाद हमेशा कामयावी मिली| मेहनत और किस्मत भले किसी की रही हो लेकिन पार्टी को हमेशा जीत मिलती रही और जीत का सेहरा साहब के सिर बंधता रहा| मेहनत किसी ने भी की हो लेकिन कामयाबी का सेहरा बंधा तो साहब को ये लगने लगा कि सारी मेहनत तो उन्होने ही की थी जिसके कारण पार्टी को कामयावी मिली है| साहब के जीत का दंभ भी इतना है कि अब साहब के पास कोई जाता है तो उससे विनम्रता से बात करना तो दूर बेइज्जत करके सीधे बाहर ही कर रहे हैं| इस वक्त जिला अध्यक्षों को लेकर प्रदेश भर से कार्यकर्ता कार्यालय आ रहे हैं और साहब से मिलना चाहते हैं अपना राजनीतिक कैरिया उनके साथ शेयर करना चाहते हैं लोगों को लगता है शायद जाते-जाते साहब उनका भला कर दें लेकिन साबह तो साहब हैं| पांच साल तक पद में रहते हुए किसी का भला नही किया तो अब जाते-जाते भला करने का कोई सवाल उठता ही नहीं लिहाजा अब बचे हुए दिनों में पद का आनंद ही क्यों न ले लिया जाए और इस बीच साहब गीरी ही क्यों न दिखा ली जाए| पार्टी की फूट का सवाल हो अथवा पार्टी में निरर्थक बयानबाजी ही क्यों न हो साहब को मालूम है कि कांटों भरा ताज तो अब जाने ही वाला है तो फिर किसी पचड़े में पड़ने से अच्छा है कि जो भी अगले नए साहब आएंगे तो सारी समस्या उनके सिर पर ही डाल कर जाएं|
What's Your Reaction?