बीजेपी को सबसे ज्यादा विधायक देने वाले विंध्य के साथ होता है 'सौतेला' व्योहार

2013 के पहले तक कांग्रेस का गढ़ रहे विंध्य क्षेत्र आज भाजपा के लिए सबसे बड़ा वोट बैंक बन चुका है। साल 2019 में जब भाजपा को प्रदेश के अलग-अलग अंचलों की जनता ने आइना दिखाने का काम किया तब भी विंध्य की जनता ने 24 सीटें देकर भाजपा को 107 सीट तक पहुंचाया था। अगर विंध्य से सीटें नहीं मिली होती तो सिंधिया के आने से भी भाजपा की सरकार नहीं बन पाती। इतनी सीटें देने के बाद भी विंध्य के हाथ खाली ही थे। साल 2023 का जब विधानसभा चुनाव हुआ तो फिर विंध्य की जनता ने भाजपा को 25 सीटें देकर सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेकिन विंध्य की जनता के बार-बार भाजपा में विश्वास करने के बाद भी विंध्य की जनता को 'लॉलीपॉप' ही पकड़ाया जाता है। सरकार में खानापूर्ति के लिए विधायकों को स्थान दिया गया। राजेन्द्र शुक्ल को भाजपा ने डिप्टी सीएम बना कर यह संदेश देने का प्रयास किया कि भाजपा विंध्य को काफी महत्व दे रही है। भाजपा ने एक ऐसे आदमी को डिप्टी सीएम बनाया जिसका आम नागरिकों से कोई सरोकार ही नहीं है उन्हे विंध्य की जनता से मिलने में शर्म आती है। यही कारण है कि रीवा सहित विंध्य से भोपाल आने वाले जरुरतमंद लोग राजेन्द्र शुक्ल के बजाय दूसरे मंत्री और नेताओं के बंगले झांकने के लिए मजबूर रहते हैं। भाजपा के वर्तमान अध्यक्ष जिनकी राजनीति पृष्ठभूमि की शुरुआत विंध्य से ही हुई लेकिन वो भी विंध्य को महत्व नहीं देते। संगठन से लेकर सरकार तक विंध्य की उपेक्षा की जाती है। जिन नेताओं को विंध्य से मंत्री बनाया गया है वो सिर्फ खानापूर्ति के हैं। राधासिंह हों य फिर प्रतिमा बागरी ये सब उदाहरण के तौर पर हैं जो सरकार में मंत्री तो हैं लेकिन उनके पास कोई अधिकार नहीं है। विंध्य से बीजेपी में जो सीनियर नेता हैं उनको कागज की रद्दी के समान एक कोने में फेंक दिया गया है जिसमें गिरीश गौतम,नागेन्द्र सिंह,दिव्यराज सिंह जो लगातार चुनाव जीत रहे हैं लेकिन भाजपा ने इन्हे कोई महत्व नहीं दिया। कांग्रेस से भाजपा में आए सिद्धार्त तिवारी को अब भी भाजपा में वो स्वीकार्यता नहीं मिली जो मिलनी चाहिए। दो बार की सांसद रही रीती पाठक को भाजपा ने विधानसभा में लेकर आई और महज एक विधायक बना कर छोड़ दिया गया जबकि उनके साथ लोकसभा से विधानसभा में आए राकेश सिंह,प्रहलाद पटेल को मंत्री पद से नवाजा गया। विंध्य से जब भाजपा के कार्यकर्ता अपनी शिकायत लेकर प्रदेश कार्यालय आते हैं तो उन्हे भी दुदकार ही मिलती है कोई भी नेता उनसे ऐसे पेस आता है जैसे वो सौतेली अम्मा की संतान हों। संगठन से लेकर सरकार तक विंध्य को नकारने का प्रयास किया जा रहा है। इसके उलट ग्वालियर-चंबल की जनता को लगातार महत्व दिया जा रहा है। इस क्षेत्र का भाजपा में लगातार दबदबा देखने को मिल रहा है। इसी क्षेत्र के नेता विंध्य में नेतृत्व नहीं पनपने दे रहे हैं। जबकि विंध्य में नेताओं की कमी नहीं है लगातार चुनाल जीतने और जितवाने की क्षमता रखने वाले नेता पार्टी में उपेक्षा का शिकार होकर खुद का अस्तित्व तलाशने में जुटे रहते हैं लेकिन उन्हे सिर्फ वोट मशीन ही समझा जाता है जिसकी जरुरत सिर्फ पांच साल में ही पड़ती है।
What's Your Reaction?






