सुरेश पचौरी के बीजेपी में शामिल होते ही एमपी कांग्रेस में 'दिग्विजय' बाद हावी
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि कांग्रेस नेता आधारित पार्टी है। जहां नेताओं के जयकारे लगाए जाते हैं न कि पार्टी के समर्थन में जयकारे लगाए जाते हैं। पिछले दिनों कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुरेश पचौरी (suresh pachouri) ने अपने कई समर्थकों के साथ बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली। सुरेश पचौरी के कांग्रेस छोड़ने पर पार्टी के नेताओं को पछतावा तो दूर की बात है बल्कि कांग्रेस पार्टी में जश्न का माहौल है। क्योंकि सुरेश पचौरी के पार्टी छोड़ने के बाद कांग्रेस में मैदान खाली हो गया। एक के बाद एक कांटे कांग्रेस के खुद निकलते चले गए ऐसे में मैदान खाली देख कांग्रेस पार्टी में दिग्विजय सिंह (digvijaya singh) के समर्थकों ने अपना आधिपत्य स्थापित करना शुरु कर दिया। इन दिनों एमपी कांग्रेस में पूर्व सीएम दिग्विजय खेमे का बोलबाला देखने को मिल रहा है। ऐसे में जो दिग्विजय समर्थक नहीं हैं अथवा उनके खेमे के नहीं हैं वो अपनी ही पार्टी में बेगाना सा महसूस करने लगे हैं। पार्टी में अब भी ऐसे कई प्रतिभाशाली और मेहनती वर्कर हैं जो पार्टी के लिए काम तो करना चाहते हैं लेकिन दिग्विजय वाद हावी होने के कारण वो पार्टी में काम नहीं कर पा रहे हैं। कार्यालय में पार्टी के कार्यकर्ता आते हैं तो उन्हे बैठने के लिए स्थान भी नहीं मिलता जिसके कारण वो पार्टी कार्यालय के बाहर चाय की दुकान में भटकते हुए अक्शर देखे जाते हैं। जीतू पटवारी को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया लेकिन वो अपनी छाप छोड़ने में नाकाम रहे हैं। जिस दिन से जीतू पटवारी को पार्टी की कमान मिली है उस दिन से कांग्रेस में लगातार पलायन का दौर जारी है। एक के बाद एक बड़े नेता कांग्रेस का हाथ छोड़ कर फूल का दामन थामते चले जा रहे हैं। कुल मिला कर कांग्रेस पार्टी इस समय अपने सबसे खराब दौर से गुजर रही है। पार्टी की स्थिति सुधरना तो दूर लगातार नए-नए खेमे पनपते चले जा रहे हैं और जो नेता खेमेबाजी करने में सक्षम नहीं हैं वो दिग्विजय सिंह के सामने माथा टेकने के लिए मजबूर हो चुके हैं। लोकसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरु हो चुकी है और कांग्रेस कार्यालय में किसी प्रकार की चुनावी रौनक देखने को अब तक नहीं मिल रही है। स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि टीवी डिवेट में बैठने के लिए कांग्रेस में प्रवक्ता तक उपलब्ध नहीं हो रहे हैं। ऐसे में बीजेपी प्रवक्ताओं को भी डिबेट करने में मजा नहीं आ रहा है।

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