कमलनाथ के गढ़ में भाजपा की बड़ी सेंधमारी से हासिए पर कमल नाथ की राजनीति,केन्द्रीय नेतृत्व नहीं दे रहा महत्व

इस बार के आम चुनाव में शायद पहली बार ऐसा हुआ होगा जब भाजपा द्वारा एक सीट पर पूरी ताकत लगाई हो। शायद जितनी ताकत से भाजपा छिंदवाड़ा से लड़ी उतनी ताकत से रायबरेली और अमेठी में भी नहीं लड़ पायी। अमित शाह, जेपी नडडा, शिवराज सिंह चौहान और साथ में प्रदेश भाजपा ने छिंदवाड़ा पर खास नजर रखी। हालत ये रही कि प्रदेश के मुख्यमंत्री और कद्दावार नेता कैलाश विजयवर्गीय ने तो छिंदवाड़ा में 15-20 दिनों तक कैम्प किया। छिंदवाड़ा कांग्रेस के हजारों कार्यकर्ता, बड़े नेता धन-बल-डर से अपना पाला बदलकर भाजपा की तरफ आ गये। कहना गलत नहीं होगा जैसे महाभारत के युद्ध क्षेत्र में कौरवों द्वारा चक्रव्यूह रचा गया उसी तरह भाजपा ने छिंदवाड़ा में चुनावी चक्रव्यूह रचा, इस चक्रव्यूह में कमलनाथ-नकुलनाथ अभिमन्यु की तरह जरूर हार गये पर उन्होंने चुनावी संग्राम में कांग्रेस को महाभारत का युद्ध जितना दिया। देश के बड़े कांग्रेस नेता, मध्यप्रदेश की छिंदवाड़ा सीट से 09 बार सांसद रहे कमलनाथ और मौजूदा सांसद रहे नकुलनाथ हार गए हैं। उन्हें कांग्रेस के एकमात्र गढ़ में हार का सामना करना पड़ा है। मध्यप्रदेश में छिंदवाड़ा ही एकमात्र ऐसी सीट थी जहां से कांग्रेस के जीतने की संभावना बताई जा रही थी। लेकिन प्रदेश से एक सीट भी कांग्रेस से छिन गई है। हालांकि नकुलनाथ को हराने के लिए दोनों ही पार्टियों ने अभिमन्यु की तरह जाल बिछाया था। बीजेपी तो ठीक है कांग्रेस भी नहीं चाहती थी कि यहां से नकुलनाथ जीतें। जीतू पटवारी, जयराम रमेश जैसे कांग्रेसियों ने नकुलनाथ के साथ कमलनाथ को भी हराने का प्रयास किया। भीतरघात कर कमलनाथ को बहुत कमजोर करने की कोशिश की। अब बड़ा सवाल है कि प्रदेश में कमलनाथ जैसे समर्पित नेता के बगैर कांग्रेस को कैसे खड़ा किया जा सकता है। यही कारण है कि पूरी सीट को एक किले के रूप में बांध दिया गया था। कमलनाथ पूरे समय अपने ही क्षेत्र में बंधे रहे। दोनों ही पार्टियों ने ऐसा माहौल बनाया कि कमलनाथ खुद को बाहर नहीं कर सके। दूसरी ओर प्रदेश कांग्रेस और केन्द्रीय कांग्रेस से कमलनाथ को कोई सपोर्ट भी नहीं मिला। प्रचार में केवल कमलनाथ और उनका परिवार मेहनत करता रहा। वहीं बीजेपी ने पूरी ताकत इस सीट को जीतने में लगा दी। प्रदेश से लेकर केन्द्र के बड़े-बड़े नेताओं ने नकुलनाथ को हराने में ताकत झोंक दी। प्रलोभन देकर स्थानीय नेताओं को अपने पाले में कर लिया। इसके साथ ही इस हार के पीछे 04 बड़े कारण भी हैं, जिन पर कमलनाथ और नकुलनाथ भी चिंतन कर रहे हैं। इस हार से कमलनाथ की छिंदवाड़ा पर पकड़ कमजोर हो जाएगी और भाजपा अब विधानसभा सीटें जीतने के लिए कोशिश करेगी। इस संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाली सभी सात विधानसभा सीटें कांग्रेस के पास थीं। कमलनाथ खुद छिंदवाड़ा विधानसभा सीट से विधायक हैं, लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के हाथ से बाजी फिसल गई। इसका पहला कारण था मध्यप्रदेश की 29 सीटों को लेकर भाजपा के पास नेता, नीति, कार्यकर्ता और संगठन था तो दूसरी तरफ कांग्रेस में ऐसा देखने को नहीं मिला।
कमलनाथ तैयारियों में रहे, सहयोगियों ने धोखा दिया
छिंदवाड़ा में पिता कमलनाथ और पुत्र नकुलनाथ चुनाव की तैयारियों में लगे रहे, लेकिन वे अपने स्थानीय नेताओं को एकजुट नहीं रख पाए। कमलनाथ के साथ दशकों तक रहे पूर्व मंत्री दीपक सक्सेना सहित जिला पंचायत और जनपद पंचायत के कई नेता भाजपा में शामिल हो गए। दीपक सक्सेना छिंदवाड़ा से कई बार विधायक रहे हैं और उन्होंने कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के लिए इस्तीफा दिया था। इसके बाद दीपक सक्सेना को लगातार उपेक्षा मिली और उन्होंने अपने विरोधी दल में जाना तय कर लिया। चुनाव के ठीक पहले विधायक कमलेश प्रताप शाह भी भाजपा में शामिल हुए। ऐसे माहौल में नकुलनाथ को जीत दिला पाना कठिन था।
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