कमलनाथ की सोशल इंजीनियरिंग ने दावेदारों की बढ़ाई मुश्किलें,अब तक जारी नहीं हुई पहली सूची
मप्र में समाज के सभी वर्गों को साधने के लिए कांग्रेस पार्टी विधानसभा चुनाव में सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला लागू करेगी। कांग्रेस ने इसके लिए विभिन्न समाजों के अलग-अलग प्रकोष्ठ भी गठित किए हैं। कांग्रेस सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले के तहत हर समाज के प्रतिनिधि को टिकट देने का प्रयास कर रही है। अब तक हुए मंथन में कांग्रेस ने समाज और जातियों के आधार पर सभी को प्रतिनिधित्व यानि टिकट देने का रोडमैप तैयार किया है। पीसीसी चीफ कमलनाथ (Kamal Nath) ने विभिन्न समाज और जातियों के लोगों की जनसंख्या का अनुमान लगाने एजेंसी के जरिए सर्वे भी कराया है। इसे टिकट का आधार बनाया जाएगा। 12 सितंबर को दिल्ली में स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक होगी। गौरतलब है कि साल 2020 में कमलनाथ सरकार गिरने के बाद कांग्रेस ने सामाजिक संगठनों,जाति आधारित संगठनों और उनके नेताओं को जोड़ने का काम किया है। कांग्रेस ने पूर्व आईएएस देवेन्द्र कुमार राय (Devendra Kumar Rai) को जिम्मेदारी सौंपी कि वो विलुप्त हो रही जनजातियों का अध्ययन कर उन्हे कांग्रेस के मंच पर लाएं। इसके बाद कांग्रेस ने विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा, भारिया और सहरिया, कोरकू भील, भिलाला, गौंड,कोल सहित कई जातियों के सम्मेलन किए। उनके लिए पार्टी संगठन में अलग प्रकोष्ठ भी गठित किया। दूसरे चरण में प्रदेश के सामाजिक ताने-बाने का एक सर्वे भी कराया है। पार्टी की रणनीति है कि जिस जाति से प्रदेश में दस लाख से अधिक मतदाता हैं,उस वर्ग के व्यक्ति को अनिवार्य रुट से टिकट दिया जाए। पीसीसी चीफ कमलनाथ द्वारा व्यक्तिगत रुप से कराए गए सर्वे से पार्टी को अंदाज लग गया है कि किस विधानसभख क्षेत्र में किस जाति के मतदाताओं की कितनी संख्या है। इस आधार को अब पार्टी टिकट वितरण का आधार बनाएगी। लेकिन कमलनाथ का यह सोशल इंजीनियरिंग फार्मूला पार्टी के अन्य दावेदारों के गले की फांस बन गया है। जो नेता खुद को बाहुबली मानते थे और उन्हे लगता था कि पार्टी उन्हे टिकट भर दे दे। उसके बाद वो धन-बल के दम पर चुनाव जीत लेंगे लेकिन अब कमलनाथ ने सोशल इंजीनियरिंग का पेंच फंसा कर बाहुबली नेताओं के गले में पट्टा डालने की तैयारी कर ली है।

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