रीवा और सतना में 'पटेलवाद' मोदी की गारंटी में बनेगा रोड़ा,बीएसपी ने बढ़ाई मुसीबत
एमपी में विध्य क्षेत्र हमेशा राजनीति के जानकारों के लिए अबूझ पहेली रहा है। पिछले कुछ सालों में इस क्षेत्र की तासीर बदली है लेकिन इतनी भी नहीं बदली है जितनी भाजपा ने उम्मीद की है। रीवा की बात करें तो यह संसदीय क्षेत्र ब्राम्हण बाहुल माना जाता है। और बीजेपी ने उस ब्राम्हणत्व का पिछली दो पंचवर्षीय से काफी लाभ उठाया है। लेकिन इस बार की परिस्थितियां भिन्न हैं। हांलाकि बीजेपी अब भी मोदी की गारंटी का दंभ भर रही है और बीजेपी का यह भी मानना है कि मोदी की गारंटी फेल हुई तो 'राम बेड़ा पार करेंगे' लेकिन जिस प्रकार से रीवा में भाजपा ने दो बार के सांसद जनार्दन मिश्रा (janardan mishra) और कांग्रेस ने नीलम मिश्रा (neelam mishra) पर दांव लगाया है उसके बाद लड़ाई दिलचश्प हो गई है। इन दोनों पार्टियों से अलग बीएसपी ने रीवा में भाजपा और कांग्रेस का तोड़ निकालते हुए कुर्मी को चुनाव मैदान में उतार कर भाजपा के लिए मुसीबतों का पहाड़ खड़ा कर दिया है। रीवा में ब्राम्हणों के अलावा कुर्मी समाज की बड़ी आबादी है और बीएसपी ने उसी का फायदा उठाते हुए अभिषेक पटेल (abhishekh patel) को चुनाव मैदान में उतार दिया है। इतिहास गवाह है कि जब भी भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों ने ब्राम्हण को अपना उम्मीदवार बनाया है तो रीवा में बीएसपी उम्मीदवारों ने चमत्कारिक प्रदर्शन कर जीत दर्ज की है। सतना का भी सूरतेहाल कुछ ऐसा ही है। बीजेपी ने चार बार के सांसद गणेश सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है जो विधानसभा चुनाव में हार चुके हैं और कट्टर कुर्मी होने के कारण अन्य वर्ग इनसे काफी नाराज है। दूसरी तरफ कांग्रेस ने विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा (siddharth kushwaha) को चुनाव मैदान में उतारा है दोनों नेता ओबीसी वर्ग से आते हैं। यहां भी बीएसपी ने बड़ा खेला करते हुए पूर्व विधायक नारायण त्रिपाठी को चुनाव मैदान में उतार दिया है। मतलब साब है कि बहुजन और ब्राम्हण एक तरफ होंगे तो यहां नारायण त्रिपाठी यानि बीएसपी जीत दर्ज कर सकती है। ऐसी परिस्थितियों में मोदी की गारंटी रीवा और सतना में फैल होने की उम्मीद की जा रही है।

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