बुंदेलखंड की कुछ सीटों पर सपा भाजपा और कांग्रेस का बिगाड़ सकती है गणित
इस बार विधानसभा चुनाव पर प्रत्याशियों से ज्यादा भाजपा, कांग्रेस और सपा के दिग्गज चेहरों पर नजर है। क्योंकि बुंदेलखंड (bundelkhand) में कुछ सीट ऐसी हैं जहां से हार जीत के साथ ही सपा प्रमुख अखिलेश यादव (akhilesh yadav) भाजपा, की दिग्गज नेत्री उमा भारती (uma bharti) और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा (vd sharma) सहित कांग्रेस के दिग्विजय सिंह (digvijaya singh) की प्रतिष्ठा दांव पर है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने छतरपुर की महाराजपुर और निवाड़ी विधानसभा में पूरा जोर लगा दिया है। क्योंकि पिछली बार छतरपुर से बिजावर सीट सपा को मिली थी। इसलिए वह प्रदेश में कहीं न कहीं अपना वजूद बनाए रखने के लिए ताबड़तोड़ सभाएं करते रहे। जिले की महाराजपुर सीट पर कांग्रेस से बागी हुए दौलत तिवारी के समर्थन में अखिलेश यादव ने चुनावी सभाएं कीं और नौगांव में पार्टी के लिए लोगों को संगठित करने का काम किया। बुंदेलखंड में चुनाव के नजदीक कुछ दिन अखिलेश यादव खजुराहो में डेरा डाले रहे।चुनावी परिणाम आने में अभी करीब आठ दिन बाकी हैं। चुनावी कयास भले ही किसी भी पार्टी के हार जीत के लगाए जाते रहे हों लेकिन असल फैसला तीन दिसंबर को ही सामने आएगा। अपने नाम का झंडा गाड़ने झौंकी पूरी ताकत बुंदेलखंड में छतरपुर टीकमगढ़ और निवाड़ी में उमा भारती, भाजपा प्रदेश ध्यक्ष वीडी शर्मा और अखिलेश यादव ने शुरू ये ही अपना प्रभाव जमा रखा था। कहीं न कहीं इन दिग्गजों के चाहने वाले ही चुनावी मैदान में उतरे हैं। इसलिए इन तीनों दिग्गजों की प्रतिष्ठा का भी सवाल है। हालांकि इस बार उमा भारती चुनावी मैदान में कम नजर आईं। खास बात यह है कि बुंदेलखंड की सीटों पर भोपाल और यूपी से नजरें गढ़ी हुई हैं। भाजपा कांग्रेस के प्रभाव के बीच अखिलेश यादव भी नौगांव, निवाड़ी और चंदला आदि सीटों पर अपना झंडा गाड़ने तुले हुए हैं। क्योंकि इन जगहों पर अखिलेश यादव ने एड़ी चोड़ी का जोर लगाया है। इस बार का चुनाव जो पिछला चुनाव हारे और इस बार पहली बार चुनाव में खड़े हुए प्रत्याशियों के लिए बेहद अहम है। क्योंकि इस बार की हार जीत आने वाले दिनों की राजनीति तय करेंगी। छतरपुर से ललिता यादव के लिए यह चुनाव बहुत अहम है। भाजपाइयों के कड़े अंदरूनी विरोध के चलते वह टिकट पाने में कामयाब रही थीं और उन्होंने पूरी दमदारी से चुनाव भी लड़ा है। लेकिन छतरपुर से कांग्रेस प्रत्याशी रहे आलोक चतुर्वेदी अपनी पहले से ही चुनावी चौसर बिछाए बैठे थे। इस कड़े चुनावी मुकाबले में कौन अधिक भारी है यह कह पाना मुश्किल है। क्योंकि यहां कांग्रेस से बागी हुए बब्बू राजा के चुनावी मैदान में आने से त्रिकोणीय मुकाबला हो गया है। इधर ललिता यादव तो मुख्यमंत्री को जीत की बधाई तक देने पहुंच गई। त्रिकोणीय मुकाबले में फंसी महाराजपुर कांग्रेस से दौलत तिवारी के बागी होने के बाद से ही महाराजपुर में त्रिकोणीय मुकाबला कहा जा रहा था। यहां त्रिकोणीय मुकाबले में सीट फंसी हुई है। महाराजपुर से कौन जीतेगा यह कह पाना मुश्किल है। महाराजपुर से पहली बार भाजपा से चुनावी मैदान में उतरे कामाख्या प्रताप सिंह को मिला युवाओं का साथ चुनावी समीकरण बदलने का काम कर सकता है। इधर कांग्रेस के नीरज दीक्षित की घर-घर तक पकड़ रही है। बसपा प्रत्याशी भी सबसे आगे रहने के दावे कर रहे हैं। अब दोनों ही युवाओं में कौन भारी रहा है यह फैसला तीन दिसंबर को सामने आएगा।

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