विंध्य की जनता को किसी एक पार्टी पर नहीं विश्वास,BSP का होगा वर्चश्व
विधानसभा चुनाव पूरे शबाब पर है। भाजपा और कांग्रेस पार्टी अपनी तरफ से पूरी ताकत के साथ चुनाव मैदान में हैं लेकिन विंध्य की बात करें तो इस बार किसी एक पार्टी पर विंध्य की जनता को विश्वास होता नहीं दिख रहा है (vindhya politics)। दरअसल विंध्य में जातिगत सियासत होती है और यही कारण है कि जो पार्टी जातियों का सही समीकरण बैठाती है उस पार्टी का विंध्य में वर्चश्व होता है। साल 2018 में विंध्य की जनता ने भारतीय जनता पार्टी को 30 में 24 सीटें देकर यह बता दिया था कि वो विकास के पक्षधर हैं। लेकिन जब साल 2020 में कांग्रेस की सरकार गिरी और भाजपा की सरकार फिर बनी तब विंध्य की जमकर उपेक्षा की गई। विंध्य से तीन मंत्री बनाए गए लेकिन उनमें सामान्य वर्ग का एक भी मंत्री नहीं था यहीं से विंध्य की जनता ने भाजपा से किनारा करना शुरु कर दिया। हांलाकि भाजपा ने बाद में भरपाई के लिए गिरीश गौतम (girish gautam) को विधानसभा अध्यक्ष बना कर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की लेकिन स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। इस चुनाव में भाजपा ने विंध्य की कई सीटों में बदलाव किया है तो वहीं कांग्रेस पार्टी ने इस चुनाव में बेहतर तरीके से जातिगत समीकरण बैठाया है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कांग्रेस की स्थिति काफी मजबूत है। भाजपा और कांग्रेस के कई उम्मीदवार एक ही वर्ग के आमने सामने हैं। इस बीच बीएसपी ने होशियारी का परिचय देते हुए दोनों पार्टियों की तुलना में अलग वर्ग के प्रत्याशी दिए हैं। रीवा की बात करें तो वहां पर आठ विधानसभा सीटों में भाजपा,कांग्रेस और बीएसपी तीनों ही पार्टियों को इस बार प्रतिनिधित्व मिलने जा रहा है। सतना की बात करें तो यहां भी बीएसपी कई सीटों में कड़ा मुकाबला कर रही है खास कर सतना की गणेश सिंह (ganesh singh) जिस सीट से चुनाव मैदान पर हैं उस सीट पर बीएसपी जीतने की स्थिति में दिख रही है। सीधी से भी यही खबर है यहां पर भी बीएसपी उम्मीदवार कठिन चुनौती देने में कामयाब हो रहे हैं और दो सीट बीएसपी सीधी में भी पाती हुई नजर आ रही है। सिंगरौली की बात करें तो वहां की भी कुछ ऐही ही स्थिति है।

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